भगवद गीता, भारतीय दर्शन का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें जीवन और धर्म के बारे में गहराई से चर्चा की गई है। यह पुस्तक हमें सिखाती है कि कैसे जीवन की कठिनाइयों का सामना करते हुए भी हम धार्मिकता और सच्चाई के मार्ग पर चल सकते हैं।
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।” – कर्म करने का अधिकार है फल की इच्छा न करें।
“योगः कर्मसु कौशलम्।” – योग कर्म में कुशलता है।
“वासांसि जीर्णानि यथा विहाय।” – जैसे पुराने वस्त्रों को त्याग दिया जाता है।
“धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ।” – धर्म के विरुद्ध नहीं होने पर मैं काम हूँ।
“जन्म मृत्यु जरा व्याधि दुःख दोषानुदर्शनम्।” – जन्म, मृत्यु, बुढ़ापा और रोग दुखों के दोष हैं।
“नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि।” – इसे कोई शस्त्र नहीं काट सकता।
“नैनं दहति पावकः।” – इसे आग नहीं जला सकती।
“न चैनं क्लेदयन्त्यापो।” – इसे पानी गीला नहीं कर सकता।
“न शोषयति मारुतः।” – इसे हवा सुखा नहीं सकती।
“नासतो विद्यते भावो।” – असत्य का कोई अस्तित्व नहीं होता।
“समयातीतानि गृह्णाति।” – समय सभी चीजों को ग्रहण कर लेता है।
“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।” – जब जब धर्म की हानि होती है।
“अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।” – अधर्म के बढ़ने पर मैं स्वयं प्रकट होता हूँ।
“परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।” – साधुओं की रक्षा और दुष्टों के विनाश के लिए।
“धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।” – धर्म की स्थापना के लिए मैं युग युग में आता हूँ।
“कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति।” – हे कुंतीपुत्र, निश्चय ही मेरा भक्त नष्ट नहीं होता।
“मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।” – मेरा चिंतन करो, मेरा भक्त बनो, मुझे यज करो और नमस्कार करो।
“मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः।” – इस प्रकार मुझमें लीन होकर तू मुझे ही प्राप्त होगा।
“अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन्।” – अजन्मा होते हुए भी और सभी भूतों का ईश्वर होते हुए भी।
“प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया।” – अपनी प्रकृति को आधार बनाकर मैं अपनी माया से प्रकट होता हूँ।
“सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।” – सभी धर्मों का परित्याग कर मेरी शरण में आओ।
“अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।” – मैं तुझे सभी पापों से मुक्त कर दूँगा, चिंता न कर।
“ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।” – जो जिस प्रकार से मेरा शरणागत होता है, मैं उसे उसी प्रकार से प्रतिदान देता हूँ।
“मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।” – हे पार्थ, सभी मनुष्य मेरी राह पर चलते हैं।
“अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।” – जो लोग बिना किसी अन्य चिंता के मेरा ध्यान करते हैं।
भगवद् गीता के अनमोल वचनों के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों की सूची यहाँ प्रस्तुत है। इन प्रश्नों के माध्यम से गीता के गूढ़ ज्ञान को समझने में मदद मिलेगी।
1. भगवद् गीता में कुल कितने श्लोक हैं?
उत्तर: भगवद् गीता में कुल 700 श्लोक हैं, जो 18 अध्यायों में विभाजित हैं। प्रत्येक अध्याय एक विशेष धर्म या योग का प्रतिपादन करता है।
2. भगवद् गीता के सबसे प्रसिद्ध श्लोक कौन से हैं?
उत्तर: भगवद् गीता के कुछ प्रसिद्ध श्लोक हैं: “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन”, “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत”, और “सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।”
3. भगवद् गीता के श्लोकों का हमारे जीवन में क्या महत्व है?
उत्तर: भगवद् गीता के श्लोक जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में दिशा निर्देश प्रदान करते हैं, चाहे वह धार्मिक आधार पर हो या नैतिक, यह जीवन के हर पहलू में संतुलन और सद्भावना स्थापित करने में सहायक है।
4. भगवद् गीता को समझने के लिए क्या करें?
उत्तर: भगवद् गीता को समझने के लिए आप विशेषज्ञों द्वारा लिखित टीकाओं का अध्ययन कर सकते हैं, साथ ही संगोष्ठियों और गीता पर आधारित कक्षाओं में भाग ले सकते हैं।
5. भगवद् गीता का हर रोज़ के जीवन में कैसे प्रयोग करें?
उत्तर: भगवद् गीता के उपदेशों को अपने नित्य कर्मों में शामिल करें, जैसे कि कर्म को बिना फल की इच्छा के करना, आत्म-संयम बनाए रखना, और सत्य व धर्म के पथ पर चलना।
उत्तर: भगवद् गीता योग के विभिन्न प्रकारों का वर्णन करती है, जैसे कर्म योग, भक्ति योग, ज्ञान योग, और ध्यान योग, जो आत्म-साक्षात्कार की दिशा में मदद करते हैं।
7. भगवद् गीता का प्राचीन भारतीय समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: भगवद् गीता ने प्राचीन भारतीय समाज में धार्मिक और नैतिक मूल्यों को मजबूत किया है, साथ ही यह समाज के विकास और चेतना को उन्नत करने में एक महत्वपूर्ण योगदान देने वाली ग्रंथ मानी जाती है।
8. भगवद् गीता को पढ़ने के लिए कौन सा संस्करण सर्वोत्तम है?
उत्तर: भगवद् गीता के कई प्रमुख संस्करण उपलब्ध हैं, जैसे कि गीता प्रेस गोरखपुर, इस्कॉन द्वारा प्रकाशित “भगवद् गीता यथारूप”, और श्री श्री रविशंकर द्वारा “भगवद् गीता: एक नई दृष्टि”। आपके अध्ययन के उद्देश्य और व्यक्तिगत रुचि के अनुसार चुनाव कर सकते हैं|