वन एवं वन्य जीव संसाधन – विस्तृत व्याख्या
परिचय
वन एवं वन्य जीव संसाधन हमारे पर्यावरण के महत्वपूर्ण घटक हैं। वे जीवन के विभिन्न पहलुओं में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इस अध्याय में, हम वनों और वन्य जीवों के महत्व, प्रकार, संरक्षण, और उन पर पड़ने वाले विभिन्न प्रभावों के बारे में गहनता से समझेंगे। यह जानकारी न केवल परीक्षा के दृष्टिकोण से, बल्कि जागरूक नागरिक बनने के लिए भी महत्वपूर्ण है।
इस अध्याय में शामिल विषय:
- वन संसाधन
- वन संसाधनों के प्रकार
- वन्य जीव संसाधन
- जैव विविधता और उसके प्रकार
- वन और वन्य जीवों के महत्व
- वन और वन्य जीवों के संरक्षण के उपाय
- वन और वन्य जीवों के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रयास
- विभिन्न वन्य जीव अभ्यारण्य, राष्ट्रीय उद्यान, और बायोस्फीयर रिजर्व
- वन और वन्य जीवों पर प्रभाव डालने वाले कारक
- पर्यावरणीय मुद्दे और उनका समाधान
1. वन संसाधन
वन, वृक्षों और पौधों का वह समूह है, जो पृथ्वी की सतह के बड़े हिस्से को ढकता है। वे जलवायु, मिट्टी, और पारिस्थितिकी तंत्र को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वन संसाधन कई प्रकार के होते हैं, जैसे लकड़ी, गोंद, रबर, जड़ी-बूटियाँ, और फल। वनों का महत्व इस प्रकार है:
- ऑक्सीजन उत्पादन और वायु शुद्धि: वनों द्वारा वायुमंडल में ऑक्सीजन का उत्सर्जन होता है, जो जीवन के लिए आवश्यक है। यह कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण भी करते हैं, जिससे प्रदूषण कम होता है।
- मृदा संरक्षण: वनों की जड़ें मिट्टी को पकड़कर रखती हैं, जिससे मृदा अपरदन कम होता है। यह जल प्रवाह को धीमा कर देती हैं, जिससे जल के बहाव से होने वाली मृदा कटाव की समस्या भी कम हो जाती है।
- जलवायु पर प्रभाव: वनों में वाष्पीकरण की प्रक्रिया से वातावरण में नमी बनी रहती है, जिससे वर्षा होती है। यह तापमान को नियंत्रित करने और जलवायु को संतुलित बनाए रखने में मदद करते हैं।
- पारिस्थितिकी संतुलन: वनों में विभिन्न प्रकार के जीव रहते हैं, जो पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में मदद करते हैं। वन जीव-जंतुओं के लिए भोजन और आवास उपलब्ध कराते हैं।
2. वन संसाधनों के प्रकार
वन संसाधन कई प्रकार के होते हैं, जो उनके उपयोग, भौगोलिक स्थिति, और अन्य विशेषताओं पर आधारित होते हैं:
(a) उष्णकटिबंधीय वर्षा वन:
ये वन अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इन वनों में उच्च जैव विविधता होती है, जिसमें कई प्रकार की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यह वन भारत के अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, पश्चिमी घाट, और पूर्वोत्तर राज्यों में अधिक पाए जाते हैं। यहाँ के प्रमुख वृक्षों में सागौन, साल, महोगनी, और बांस शामिल हैं।
(b) शुष्क पर्णपाती वन:
ये वन उन क्षेत्रों में होते हैं, जहाँ वर्षा कम होती है। इन वनों में वृक्षों की पत्तियाँ शुष्क मौसम में गिर जाती हैं, जिससे नमी की कमी को पूरा किया जा सके। यह वन भारत के मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, और राजस्थान में अधिक पाए जाते हैं। इनमें साल, सागौन, नीम, और पलाश प्रमुख वृक्ष हैं।
(c) समशीतोष्ण वन:
ये वन ठंडे और ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इनमें कोनिफ़र जैसे वृक्ष होते हैं, जो सुईनुमा पत्तियों वाले होते हैं। यह वन हिमालय, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, और जम्मू-कश्मीर के क्षेत्रों में अधिक होते हैं। देवदार, चीड़, और फर इस प्रकार के प्रमुख वृक्ष हैं।
(d) मंग्रोव वन:
ये वन तटीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं, जहाँ समुद्र का खारा पानी और मीठे पानी का मिश्रण होता है। मंग्रोव वन खारे पानी में भी जीवित रह सकते हैं। यह वन सुंदरबन, अंडमान-निकोबार द्वीप, और पश्चिमी तट के निचले क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
(e) मरुस्थलीय वन:
ये वन अधिक शुष्क और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में होते हैं। इन क्षेत्रों में उगने वाले पौधे जल संरक्षण के लिए अनुकूलित होते हैं। यह वन राजस्थान, गुजरात, और पश्चिमी भारत के अन्य हिस्सों में पाए जाते हैं। कँटेदार झाड़ियाँ, बबूल, और कैक्टस प्रमुख पौधे हैं।
3. वन्य जीव संसाधन
वन्य जीव संसाधन उन जीवों का समूह है, जो प्राकृतिक आवासों में रहते हैं और पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा होते हैं। वन्य जीवों का महत्व केवल पर्यावरणीय दृष्टि से ही नहीं, बल्कि आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से भी होता है।
- स्तनधारी: इनमें बाघ, शेर, हाथी, और गैंडा जैसे बड़े जीव शामिल होते हैं। यह प्रजातियाँ भारतीय वनों में पाई जाती हैं।
- पक्षी: भारत में मोर, गिद्ध, तोता, और हंस जैसे पक्षी पाए जाते हैं, जो विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्र में जीवन जीते हैं।
- सरीसृप: इसमें मगरमच्छ, साँप, और छिपकली जैसी प्रजातियाँ आती हैं। ये जल में और भूमि पर, दोनों में जीवन जी सकती हैं।
- जलीय जीव: इनमें मछलियाँ, डॉल्फिन, और कछुए शामिल हैं, जो नदियों, झीलों, और समुद्र में रहते हैं।
- कीट और कीड़े: यह पर्यावरण के लिए बहुत आवश्यक होते हैं, क्योंकि वे परागण, अपघटन, और खाद्य श्रृंखला को बनाए रखते हैं।
वन्य जीव संसाधन, जैव विविधता को बनाए रखने में और पारिस्थितिकी संतुलन को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं।
4. जैव विविधता और उसके प्रकार
जैव विविधता, एक विशेष स्थान पर विभिन्न प्रकार के जीवों की उपस्थिति को दर्शाती है। इसे तीन मुख्य प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है:
(a) प्रजाति विविधता:
यह किसी विशेष क्षेत्र में पाई जाने वाली प्रजातियों की संख्या को दर्शाती है। यह सबसे सामान्य प्रकार की जैव विविधता है और किसी पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता का माप है।
(b) आनुवांशिक विविधता:
यह एक ही प्रजाति के भीतर पाए जाने वाले आनुवांशिक अंतर को दर्शाती है। यह किसी भी प्रजाति की अनुकूलन क्षमता और विकास को सुनिश्चित करती है।
(c) पारिस्थितिकी तंत्र विविधता:
यह एक क्षेत्र में पाए जाने वाले विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्रों को दर्शाती है। यह प्रकार मानव जीवन और पर्यावरण के अन्य घटकों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह ऊर्जा, पोषण, और अन्य संसाधनों के प्रवाह को बनाए रखती है।
5. वन और वन्य जीवों के महत्व
वन और वन्य जीव संसाधनों के महत्व को विभिन्न दृष्टिकोणों से समझा जा सकता है:
(a) पर्यावरणीय संतुलन:
वन और वन्य जीव, पारिस्थितिकी तंत्र में जैविक संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं। वे खाद्य श्रृंखला के महत्वपूर्ण घटक हैं और ऊर्जा प्रवाह को संतुलित रखते हैं।
(b) आर्थिक लाभ:
वनों से लकड़ी, औषधीय पौधे, फल, और अन्य संसाधन प्राप्त होते हैं, जो आर्थिक विकास में सहायक होते हैं। वन्य जीव पर्यटन, अनुसंधान, और औषधि के क्षेत्र में भी उपयोगी होते हैं।
(c) सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व:
भारत में कई वन और वन्य जीव धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखते हैं। जैसे, पीपल और तुलसी का पेड़ धार्मिक पूजाओं में उपयोग होता है, जबकि गाय और हाथी को पवित्र माना जाता है।
(d) वैज्ञानिक अनुसंधान:
वन्य जीवों और वनों का अध्ययन वैज्ञानिकों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इससे पारिस्थितिकी तंत्र, आनुवांशिक विविधता, और प्रजातियों के विकास के बारे में जानकारी मिलती है।
6. वन और वन्य जीवों के संरक्षण के उपाय
वन और वन्य जीवों के संरक्षण के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:
(a) कठोर कानूनों का पालन:
अवैध कटाई, शिकार, और वन्य जीवों के व्यापार पर सख्त कानूनी नियंत्रण होना चाहिए।
(b) स्थानीय समुदायों की भागीदारी:
स्थानीय समुदायों को वनों और वन्य जीवों के संरक्षण में शामिल करना चाहिए।
(c) पुनर्वनीकरण (Reforestation):
जहाँ वन समाप्त हो चुके हैं या क्षति पहुँची है, उन क्षेत्रों में पुनर्वनीकरण किया जाना चाहिए। इसमें तेजी से बढ़ने वाले और स्थानीय पौधों का चयन किया जाना चाहिए, ताकि वनों का पुनर्निर्माण संभव हो सके। यह प्रक्रिया न केवल वनावरण को बढ़ाने में मदद करती है, बल्कि मृदा संरक्षण और जलवायु को भी स्थिर बनाती है।
(d) वन्य जीवों के लिए प्राकृतिक आवास संरक्षण:
वन्य जीवों के प्राकृतिक आवासों का संरक्षण आवश्यक है, ताकि उनकी संख्या में कमी न आए। इसके लिए विशेष अभ्यारण्य, राष्ट्रीय उद्यान, और बायोस्फीयर रिजर्व स्थापित किए गए हैं। इन क्षेत्रों में वन्य जीव बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के स्वतंत्र रूप से रह सकते हैं।
(e) जागरूकता अभियान:
वन और वन्य जीवों के संरक्षण के महत्व के बारे में लोगों को जागरूक करना आवश्यक है। इसके लिए विद्यालयों, कॉलेजों, और सामाजिक संगठनों के माध्यम से जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा सकते हैं। रेडियो, टीवी, इंटरनेट, और सोशल मीडिया का भी प्रभावी रूप से उपयोग किया जा सकता है।
(f) वैज्ञानिक अनुसंधान और शिक्षा:
वन और वन्य जीव संरक्षण के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि वनों और वन्य जीवों के विकास, स्वास्थ्य, और उनके प्रबंधन के तरीकों के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त हो सके। पर्यावरणीय शिक्षा को विद्यालय स्तर पर अनिवार्य करना चाहिए, ताकि बच्चों को बचपन से ही वन और वन्य जीवों के प्रति संवेदनशील बनाया जा सके।
7. वन और वन्य जीवों के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रयास
वन और वन्य जीव संरक्षण के लिए भारत सरकार और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने कई प्रयास किए हैं:
(a) राष्ट्रीय प्रयास:
भारत में वन और वन्य जीव संरक्षण के लिए कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम और नीतियाँ लागू की गई हैं:
- राष्ट्रीय उद्यान और अभ्यारण्य स्थापना: भारत सरकार ने कई राष्ट्रीय उद्यान और वन्य जीव अभ्यारण्य स्थापित किए हैं, जैसे काजीरंगा नेशनल पार्क, रणथंभौर नेशनल पार्क, और सुंदरबन नेशनल पार्क। यह संरक्षित क्षेत्र वन्य जीवों के संरक्षण और उनके प्राकृतिक आवास को बनाए रखने के लिए बनाए गए हैं।
- वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972: यह अधिनियम वन्य जीवों के शिकार और व्यापार को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया है। इसके तहत, कई प्रजातियों को विशेष संरक्षण प्रदान किया गया है।
- जैव विविधता अधिनियम, 2002: यह अधिनियम जैव विविधता के संरक्षण और उसके सतत उपयोग के लिए लागू किया गया है। इसके तहत, जैव विविधता प्रबंधन समितियाँ बनाई गई हैं, जो स्थानीय स्तर पर जैव विविधता के संरक्षण का कार्य करती हैं।
- ग्रीन इंडिया मिशन: इस मिशन का उद्देश्य वनों का क्षेत्रफल बढ़ाना, वनस्पतियों को पुनर्जीवित करना, और वन्य जीवों का संरक्षण करना है। यह मिशन देश के विभिन्न हिस्सों में वृक्षारोपण अभियान चला रहा है।
(b) अंतर्राष्ट्रीय प्रयास:
वन और वन्य जीव संरक्षण के लिए कई अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और संधियों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है:
- CITES (Convention on International Trade in Endangered Species): यह एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है, जो विलुप्तप्राय प्रजातियों के व्यापार को नियंत्रित करता है। इसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण विलुप्तप्राय प्रजातियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
- WWF (World Wildlife Fund): यह संगठन विश्वभर में वन्य जीव संरक्षण और पर्यावरणीय सुरक्षा के लिए कार्य करता है। इसका लक्ष्य वनों और वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास को बचाना है।
- UNEP (United Nations Environment Programme): यह संगठन वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दों को हल करने के लिए काम करता है, जिसमें वन और वन्य जीव संरक्षण भी शामिल हैं।
- बायोस्फीयर रिजर्व प्रोग्राम: UNESCO द्वारा संचालित यह कार्यक्रम दुनिया भर के बायोस्फीयर रिजर्व के संरक्षण और सतत प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करता है।
8. विभिन्न वन्य जीव अभ्यारण्य, राष्ट्रीय उद्यान, और बायोस्फीयर रिजर्व
वन और वन्य जीवों के संरक्षण के लिए भारत में कई अभ्यारण्य, राष्ट्रीय उद्यान, और बायोस्फीयर रिजर्व स्थापित किए गए हैं:
(a) राष्ट्रीय उद्यान:
ये संरक्षित क्षेत्र विशेष रूप से वन्य जीवों के संरक्षण के लिए बनाए गए हैं। भारत के कुछ प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान इस प्रकार हैं:
- काजीरंगा नेशनल पार्क: यह असम में स्थित है और यहाँ एक सींग वाले गैंडे की प्रमुख आबादी है।
- जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क: यह उत्तराखंड में स्थित है और बाघ संरक्षण के लिए प्रसिद्ध है।
- कन्हा नेशनल पार्क: यह मध्य प्रदेश में स्थित है और यहाँ बाघ, बारहसिंगा, और तेंदुए पाए जाते हैं।
- गिर नेशनल पार्क: यह गुजरात में स्थित है और यहाँ एशियाई शेरों की आबादी है।
(b) वन्य जीव अभ्यारण्य:
यह संरक्षित क्षेत्र वन्य जीवों को सुरक्षा प्रदान करते हैं और उनके प्राकृतिक आवास को संरक्षित करते हैं। भारत में प्रमुख वन्य जीव अभ्यारण्य हैं:
- रणथंभौर अभ्यारण्य: यह राजस्थान में स्थित है और बाघ संरक्षण के लिए प्रसिद्ध है।
- सुंदरबन अभ्यारण्य: यह पश्चिम बंगाल में स्थित है और यहाँ बाघों की एक विशेष प्रजाति पाई जाती है।
- सरिस्का अभ्यारण्य: यह राजस्थान में स्थित है और यहाँ कई प्रकार के स्तनधारी और पक्षी पाए जाते हैं।
(c) बायोस्फीयर रिजर्व:
यह क्षेत्र पारिस्थितिकी तंत्र, प्रजातियों, और आनुवांशिक विविधता के संरक्षण के लिए बनाए जाते हैं। भारत के प्रमुख बायोस्फीयर रिजर्व हैं:
- नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व: यह तमिलनाडु, कर्नाटक, और केरल में फैला है और इसमें उच्च जैव विविधता पाई जाती है।
- सुंदरबन बायोस्फीयर रिजर्व: यह पश्चिम बंगाल में स्थित है और इसमें बाघों के अलावा कई अन्य वन्य जीव पाए जाते हैं।
- नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व: यह उत्तराखंड में स्थित है और यहाँ हिमालय की विशिष्ट जैव विविधता पाई जाती है।
9. वन और वन्य जीवों पर प्रभाव डालने वाले कारक
वन और वन्य जीवों पर कई कारक नकारात्मक प्रभाव डालते हैं, जिनमें मुख्य रूप से मानव गतिविधियाँ शामिल हैं:
(a) अवैध कटाई और शिकार:
वनों से अवैध रूप से लकड़ी काटना और वन्य जीवों का शिकार करना वनों और जैव विविधता के लिए सबसे बड़ा खतरा है। इससे वनों की घटती संख्या और वन्य जीवों की आबादी में कमी आती है।
(b) कृषि विस्तार:
कृषि भूमि की बढ़ती मांग के कारण वनों का कटान होता है, जिससे वनों की जैव विविधता और वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास प्रभावित होते हैं। यह प्रक्रिया मिट्टी की गुणवत्ता को भी प्रभावित करती है।
(c) औद्योगिकीकरण:
औद्योगिकीकरण के कारण वनों का अतिक्रमण होता है। उद्योगों के लिए कच्चे माल की प्राप्ति, भूमि की मांग, और प्रदूषण वनों और वन्य जीवों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं।
(d) जलवायु परिवर्तन:
जलवायु परिवर्तन वनों और वन्य जीवों के लिए एक गंभीर समस्या है। तापमान में वृद्धि, मौसम के पैटर्न में बदलाव, और प्रदूषण वन्य जीवों के आवास को प्रभावित करते हैं और कई प्रजातियों के लिए विलुप्ति का खतरा पैदा करते हैं।
(e) प्रदूषण:
वायु, जल, और मृदा प्रदूषण वनों और वन्य जीवों के स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं। रसायनों और औद्योगिक कचरे के कारण वनस्पतियों और जीवों की विविधता घट रही है।
10. पर्यावरणीय मुद्दे और उनका समाधान
पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं:
(a) सतत विकास:
संसाधनों का सतत और सटीक उपयोग सुनिश्चित करना चाहिए, ताकि उनके संरक्षण के साथ-साथ भविष्य में भी उनका लाभ उठाया जा सके।
(b) सरकारी और गैर-सरकारी भागीदारी:
सरकार और गैर-सरकारी संगठनों को साथ मिलकर पर्यावरणीय संरक्षण के लिए काम करना चाहिए। NGOs स्थानीय समुदायों को संरक्षण की जानकारी देने और जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
(c) वृक्षारोपण अभियान:
वृक्षारोपण अभियान चलाने से वनों का क्षेत्र बढ़ाया जा सकता है, जिससे पर्यावरण का संतुलन बनाए रखा जा सकता है। स्कूल, कॉलेज, और सामुदायिक स्तर पर वृक्षारोपण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
(d) पर्यावरणीय शिक्षा:
विद्यालयों और कॉलेजों में पर्यावरणीय शिक्षा को अनिवार्य बनाना चाहिए, ताकि बच्चों को बचपन से ही पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक बनाया जा सके।
(e) विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग:
वनों और वन्य जीवों के संरक्षण के लिए आधुनिक तकनीकों, जैसे ड्रोन निगरानी, जीआईएस मैपिंग, और डीएनए विश्लेषण का उपयोग करना चाहिए।
शब्दावली (Glossary)
- वन संसाधन (Forest Resources): वे प्राकृतिक संसाधन जो वृक्षों और पौधों के रूप में पाए जाते हैं और पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं।
- जैव विविधता (Biodiversity): किसी विशेष क्षेत्र में पाए जाने वाले विभिन्न जीवों और वनस्पतियों की विविधता।
- पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem): जीवों और उनके पर्यावरण के बीच पारस्परिक संबंध।
- उष्णकटिबंधीय वर्षा वन (Tropical Rainforest): उच्च वर्षा वाले क्षेत्र में पाए जाने वाले वन, जिनमें उच्च जैव विविधता होती है।
- पुनर्वनीकरण (Reforestation): उन क्षेत्रों में फिर से वृक्ष लगाना, जहाँ वन समाप्त हो चुके हैं।
- वन्य जीव संसाधन (Wildlife Resources): जंगलों में पाए जाने वाले जीव, जो पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा होते हैं।
- अवैध कटाई (Illegal Logging): बिना अनुमति के वनों से पेड़ काटने की प्रक्रिया, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है।
- राष्ट्रीय उद्यान (National Park): वन्य जीवों और वनस्पतियों के संरक्षण के लिए बनाए गए संरक्षित क्षेत्र।
- बायोस्फीयर रिजर्व (Biosphere Reserve): पारिस्थितिकी तंत्र, प्रजातियों, और आनुवांशिक विविधता के संरक्षण के लिए समर्पित क्षेत्र।
- मंग्रोव वन (Mangrove Forest): खारे पानी वाले तटीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले विशेष प्रकार के वन।
- सतत विकास (Sustainable Development): संसाधनों का इस प्रकार उपयोग करना कि वे भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी उपलब्ध रहें।
- सीटिस (CITES): विलुप्तप्राय प्रजातियों के व्यापार को नियंत्रित करने वाला एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता।
- शुष्क पर्णपाती वन (Dry Deciduous Forest): कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पाए जाने वाले वन, जिनकी पत्तियाँ शुष्क मौसम में गिर जाती हैं।
- कृषि विस्तार (Agricultural Expansion): कृषि भूमि के लिए वनों का कटान और विस्तार।
- प्रजाति विविधता (Species Diversity): किसी क्षेत्र में पाई जाने वाली प्रजातियों की संख्या और विविधता।
प्रश्नावली
- वन संसाधनों को कितने प्रकारों में विभाजित किया गया है? उनके नाम और विशेषताएँ क्या हैं?
- उष्णकटिबंधीय वर्षा वन और समशीतोष्ण वनों में मुख्य अंतर क्या है?
- जैव विविधता के संरक्षण का महत्व क्या है? इसके तीन प्रकार कौन-कौन से हैं?
- वन और वन्य जीवों के संरक्षण के लिए कौन-कौन से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रयास किए गए हैं?
- पुनर्वनीकरण (Reforestation) क्या है और यह क्यों आवश्यक है?
- मंग्रोव वन क्या होते हैं? ये किन क्षेत्रों में पाए जाते हैं?
- बायोस्फीयर रिजर्व और राष्ट्रीय उद्यान के बीच मुख्य अंतर क्या है?
- वन्य जीव संसाधन किन प्रमुख प्रजातियों में विभाजित होते हैं? उनके उदाहरण दें।
- अवैध कटाई और शिकार वन और वन्य जीव संसाधनों पर कैसे प्रभाव डालते हैं?
- पर्यावरणीय जागरूकता को बढ़ाने के लिए कौन-कौन से उपाय किए जा सकते हैं?
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